Thursday, April 5, 2012

शहर और वो

दौडते क़दमों का शोर
बेचैन पुतलियों की ख़ामोशी 


होंठों पर मुस्कराहट
आँखों में हिकारत 


हकीक़त का आईना
ख्वाबों का झूठ 


ख्वाहिशों का आसमान
उम्मीदों की ज़मीन


मोम सा पिघलता दिन
पत्थर सी कड़ी होती रात


किसी के मिजाज़ की गर्मी 
और.. किसी के लफ़्ज़ों का सर्दपन


सब.. ये सब मिलकर भी रत्ती भर बदल नहीं पाए हैं..
उम्मीद उस की, आज भी उसी की तरह 'हठी' है.

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