और जब कभी ऐसा होता है कि खुद को खुद ही के
कंधे पर उठाके थक जाती हूँ.. खुद को उतार के फ़ेंक देती हूँ. कुछ इसे 'reform' कहते हैं, कुछ कहते है कि सांप
की तरह केंचुली उतार फेंकी.. कोई हिकारत से देखता है, तो किसी की नज़रों से
सवालों का धुआं उठ रहा होता
है.
क्या ज़रूरी है कि हर बात सही / गलत, जायज़ / नाजायज़ या अच्छी / खराब हो? कुछ बातें, कुछ चीज़ें 'neutral' भी तो हो सकती हैं..
हो सकती हैं?
i refuse !
ReplyDeleteeven for a person , whatever he / she does turns either good or bad :)